600 वर्षों तक राजपूतों ने न केवल भारत पर शासन किया, बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ़ देश की रक्षा करें। भारतीय सभ्यता, संस्कृति तथा धर्म के संरक्षण एवं पोषण में इस जाति का प्रभाव श्लाघनीय एवं अतुलनीय है। राजनीतिक अवस्था के बाद भी राजपूत काल साहित्य, कला के उन्नति का काल था। स्थापत्य तथा शिल्पकला की इस समय बडी उन्नति हुई। मूर्तिकला और चित्रकला विकसित अवस्था में थी। साथ ही आर्थिक दशा भी इस समय अच्छी थी। अपूर्व पौरुषता और साहस की प्रतीक यह जाति बलिदान, सहिष्णुता और सिद्धांतों के त्याग के लिये इतिहास प्रसिद्ध रही है। भारतीय संस्कृति की रक्षा करने में जन समुदायों में श्रेष्ठ क्षत्रिय राजपूत कुलों का योगदान सर्वोपरि रहा है। क्षत्रिय वंशजों के खून से सिंचित यह पुरातन संस्कृति अन्यों की अपेक्षा आज भी अजर - अमर है।
क्षत्रिय वंश के उद्भव का प्रारम्भिक संकेत हमें पुराणों से मिलने लगता है कि सूर्यवंश और चंद्रवंश ही क्षत्रिय वंश परम्परा के मूल स्त्रोत है। पुराणों से संकेत मिलता है कि मनु के पूत्रों से ही सुर्यवंश की नींव पडी थी और मनु की कन्या ईला के पति बुध थे जो चंद्रदेव के पुत्र थे, इन्ही से चंद्रवंश की नींव पडी।मूल क्षत्रिय वंशों की संख्या के बारे में विद्वानों में एकमत नहीं है। कुछेक - सूर्यवंश, चंद्रवंश और अग्निवंश की चर्चा करते हैं तो सूर्यवंश, चंद्रवंश और अग्निवंश, ऋषिवंश तथा दैत्यवंश। हालाकिं अधिकांश इतिहासकार यह मानते है कि सूर्य तथा चंद्रवंश से ही सभी वंश शाखाएं है।